नांदेड- जब से सरकार ने पी.एफ.आई. पर प्रतिबंध लगाने की घोषणा की है बहुत सारे लोग मुख्यत: पी.एफ.आई. से सहानुभूति रखने वाले इस कदम पर घडि़याली ऑंसू बहा रहे हैं। कुछ एक ने तो इसे मुस्लिम समुदाय के खिलाफ सोची समझी भेदभाव करार दिया तो कुछ ने तो इसे क्रांति आवाज पर रोक बताया। इस कदम पर किसी निर्णय पर पहुँचने से पहले यह आवश्यक है कि प्रतिबंधित संगठन की गतिविधि एवं कार्य-प्रणाली का अवलोकन किया जाए।
आतंकी विचारधारा को समर्थन देने वाला पी.एफ.आई. लोकतंत्र और मजहबी-निरपेक्षता को दूषित करता है और मानता है कि भारतीय संविधान इस्लाम के मूल-सिद्धांतों से विपरीत है। पी.एफ.आई. ने हमेशा से बल दिया है कि एक सच्चा मुसलमान भारतीय संविधान में कभी भी आस्था या निष्ठा नहीं रख सकता है। यह इस्लाम के प्रचार-प्रसार के लिए बल प्रयोग को सही ठहराता है, मुसलमानों को मौलिक रूप से प्रेरित करता है और भारतीय उपमहाद्वीप के देशी सद्भावपूर्ण इस्लाम को एक कट्टरपंथी संस्करण में बदलने का प्रयास करता है। अलकायदा ने स्थिति बयाँ करते हुए कहा था कि इस्लामी राज्य बनाने में भारतीय धर्म-निरपेक्ष एक मूलभूत बाधा है जो कि पी.एफ.आई. के विचारधारा को ध्वनित करता है।
जकात के नाम पर पी.एफ.आई. प्रत्येक वर्ष करोड़ो रूपया इकट्ठा करता है। सीधे-साधे मुसलमान इस आशा पर पी.एफ.आई. को जकात देते हैं कि उनके पैसे जरूरतमंदों की भलाई पर खर्च होगा। जबकि उनमें से कुछ को ही पता है कि हाल ही में प्रवर्त्तन निदेशालय ने यह स्पष्ट किया कि दान में दिए हुए पैसे शाहीन बाग मुख्यालय में बिना कोई लेखा-जोखा के पाए गए। जॉंच में यह भी पता चला कि पैसे को एंटी सी.ए.ए. कार्यक्रम के दौरान पूरे देश में बॉंटा गया था। कुरान के आयत 9:60 में अल्लाह ने स्पष्ट रूप से कहा है कि दान केवल जरूरतमंदों, निराश्रितों, बंदियों को मुक्त करने, कर्जदारों के लिए, अल्लाह के कारणों के लिए इस्तेमाल होगा। सीमित ज्ञान के साथ कोई भी नौसिखिया आज आसानी से यह समझ सकता है कि पी.एफ.आई. इनमें से किसी भी श्रेणी में नहीं आता।
पी.एफ.आई. के पास एक वरिष्ठ संवर्ग है जो कि इन घटना में संलिप्त रहने वाले कार्यकर्ताओं को आकस्मिक अवस्था में दुश्मन पर हमला करवाना, उन्हें हथियार, रहने का स्थान, पैसा आदि मुहैया कराता है। ऐसे ही एक वरिष्ठ कार्यकर्त्ता का नाम सादिक है जो कि पी.एफ.आई. द्वारा मैंगलोर में 2008 में आयोजित परेड का ध्वजवाहक था उसने बताया कि उनके आदमी ने लालकृष्ण आडवाणी के सुरक्षा में मुस्तैद एन.एस.जी. कमांडों की हत्या की। पी.एफ.आई. जो कि अपने आप को ‘साफ-सुथरा संगठन’ बताता है खाड़ी देशों में काम करने वाले भारतीय मुसलमानों से करोड़ों में धन इकट्ठा करता है और हवाला के माध्यम से इसे भारत भेजता है। पकड़ में आने से बचने के लिए पैसे को एक बार में 10 लाख से अधिक नहीं रखा जाता था। इसमें कोई भी आश्चर्य नहीं है कि पी.एफ.आई. कार्यकर्ता सादिक हत्या करवाने के लिए गुर्गे की भर्ती करता था। पी.एफ.आई. कहता है कि ‘शहादत की चाहत है ईमान वालों की विशेषता’ परंतु पी.एफ.आई. के अधिकारियों से पूछना चाहिए कि शहादत को साबित करें। क्या यह जरूरी है कि एक शिक्षक का हाथ काटना जरूरी था, गैर-मुस्लिम की जघन्य हत्या या आतंकी कृत्य में लिप्त होना इत्यादि।
तुर्क लेखक हारून याहिया (अदनान ओख्तार) ने एक बार कहा था कि इस्लाम मजहब कभी भी आतंकवाद का मुकाबला नहीं कर सकता। इसके विपरीत (निर्दोष लोगों की हत्या) इस्लाम में आतंक एक महान पाप है। इन कृत्यों को रोकने और दुनिया में शांति और न्याय लाने के लिए मुसलमान जिम्मेदार है। तथ्यों को आधार बनाकर किसी संगठन को प्रतिबंधित करना सरकार की जिम्मेदारी है। यह तथ्य पर आधारित है या नहीं इसका फैसला अदालत करेगी। परंतु मानव जाति के नाते हमें इस फैसले का समर्थन करना चाहिए जिससे पी.एफ.आई. जैसे चरमपंथी संगठन को समाज में घृणा फैलाने से रोका जा सके और भारत को रहने के लिए एक सुंदर जगह बनाया जा सके।
– संपादक