नांदेड़ (प्रतिनिधि) – 300 वर्षों से सचखंड श्री हजूर साहिब की धार्मिक परंपरा से पूजा की जाती है। नांदेड़ सिख गुरुद्वारा तख्त सचखंड श्री हजूर अबचलनगर साहिब अधिनियम 1956 निज़ाम सरकार के दौरान बनाया गया था। आज भी गुरुद्वारा बोर्ड का कारोबार उसी कानून के मुताबिक काम करता है। नांदेड़ सिख समुदाय में इस बात को लेकर गुस्सा है कि महाराष्ट्र में मौजूदा सरकार जल्दही इस कानुन को बदलने वाली है। 2014 से चल रहा सरकार का यह खेल भले ही अपने अंतिम चरण में पहुंच गया है, लेकिन आज की स्थिति में भी नांदेड़ के सिख समुदाय और अन्य स्थानों के सिख समुदाय में महाराष्ट्र सरकार को लेकर कई मतभेद हैं। बिना किसी सामाजिक आपत्ती, पंचप्यारे साहिबान की आपत्ति पर विचार किए बिना महाराष्ट्र सरकार बदलाव करने जा रही हैं। अगर नए कानून के तहत ये मतभेद बढ़ते हैं, तो 300 साल की परंपरा को कहीं न कहीं नुकसान होगा और उसके बाद आने वाली अशांति के लिए महाराष्ट्र सरकार जिम्मेदार होगी । इसके लिए शीतकालीन सत्र में कुछ विधायकों ने तारांकित प्रश्न भी उपस्थित किये थे। लेकिन सरकार ने भी उन्हें गोलमोल जवाब दिये और कोई ठोस भूमिका नहीं दिखायी।
300 साल पहले दशम पातशाह ने यह संदेश देकर एक धार्मिक परंपरा शुरू की थी कि मेरे बाद श्री गुरु ग्रंथ साहिबजी ही गुरु होंगे। इस धार्मिक परंपरा को संरक्षित करते हुए सचखंड श्री हजूर साहिबजी में दुनिया भर से आने वाले सिख भक्तों ने गुरु महाराज के आदेश के अनुसार नांदेड़ में दरबार साहिब में पूजा करने की परंपरा सुनिश्चित की। और यह पिछले 300 से अधिक वर्षों से बिना किसी बदलाव के जारी है। जिस प्रकार एक सिक्के के दो पहलू होते हैं, उसी प्रकार समाज के भी कई पहलू होते हैं। इन सभी बातों का ध्यान रखते हुए सिख धर्म में पंचप्यारे साहिबान के आदेश का सबसे अधिक महत्व है। नांदेड़ सिख गुरुद्वारा तख्त सचखंड श्री हजूर अबचलनगर साहिब अधिनियम 1956 को एक लिखित अधिनियम के रूप में अधिनियमित किया गया था। उस अधिनियम के तहत बोर्ड आजभी सचखंड श्री हजूर साहिब की परंपरा का अनूपालन करते है। यह अधिनियम निज़ाम शासन के दौरान बनाया गया था।
जब कोई काम अच्छा चल रहा हो तो उसमें शरारत करना एक स्वभाव है। कुछ लोगों का मानना है कि इस परिस्थिती में अब 1956 के अधिनियम को अप्रचलित बना दिया है। इसमें नमक का एक दाना जोड़ा गया कि नए बदलावों की जरूरत है। 2014 में एक अधिसूचना जारी की गई और 1956 अधिनियम में संशोधन के लिए तीन सदस्यीय समिति का गठन किया गया। हालॉंकि, नांदेड़ में सिख समुदाय इस कानून में बदलाव नहीं चाहता था, और आजभी नही चालता है। इसलिए 27 मार्च 2014 को मुख्य जत्थेदार संत बाबा कुलवंतसिंघजी, गुरुद्वारा बोर्ड के तत्कालीन अध्यक्ष और आज के अध्यक्ष डॉ. विजय सतबीरसिंघ, मीत जत्थेदार संत बाबा ज्योतिंदर सिंघजी, प्रधान ग्रंथी संत बाबा कश्मीर सिंघजी, मीत ग्रंथी संत बाबा विजेंद्रसिंघजी धूपिया संत बाबा रामसिंघजी, गुरुद्वारा बोर्ड के तत्कालीन अधीक्षक रणजीतसिंघजी चिरागिया और रजिस्ट्रार थानसिंघजी बुंगई की एक समिति ने सरकार को एक ज्ञापन भेजा और सुझाव दिया कि कोई बदलाव नहीं होगा। नांदेड़ सिख गुरुद्वारा तख्त सचखंड श्री हजूर अबचलनगर साहिब एक्ट 1956 में कोई बदलाव नहीं किया जाना चाहिए।
फिर 28 अप्रैल 2014 को गुरुद्वारा बोर्ड के अध्यक्ष डॉ. विजय सतबीरसिंघ, जिला कलेक्टर धीरज कुमार, नांदेड़ के तीन निर्वाचित सदस्यों और अन्य नियुक्त सदस्यों ने गुरुद्वारा बोर्ड अधिनियम में बदलाव पर आपत्ति जताते हुए महाराष्ट्र सरकार को एक ज्ञापन भेजा। वर्ष 2018 में जब एक बार फिर मुख्यमंत्री देवेन्द्र फड़णवीस बने तो पंचप्यारे साहिबान ने गुरुद्वारा बोर्ड एक्ट में कोई बदलाव न करने के लिए निवेदन भेजा। शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधन समिति के अध्यक्ष गोविंदसिंघजी लोंगोवाल ने भी 30 जुलाई 2020 को महाराष्ट्र सरकार को पत्र भेजकर सुझाव दिया था कि 1956 के एक्ट में कोई बदलाव न किया जाए। किसी भी सुझाव, विशेषकर पंचप्यारे साहिबान के सुझावों को अनसुना करते हुए, महाराष्ट्र सरकारने धीरे-धीरे 1956 अधिनियम में संशोधन की प्रक्रिया शुरू कर दी। लेकिन जागरूक सिख समाज (संगत) ने कानून में बदलाव का विरोध जारी रखा। शायद महाराष्ट्र सरकार को अभी तक संगत की ताकत का एहसास नहीं हुआ है और इसीलिए सरकार संगत के बारे में सोचे बिना यह सब कर रही है। सरकार ने आज तक इस गुरुद्वारा बोर्ड के कामकाज पर अपना ध्यान केंद्रित रखा है। क्योंकि कई प्रशासनिक अधिकारियों को इस बोर्ड का अध्यक्ष बनाया गया था। वर्तमान कलेक्टर अभिजीत राऊत को भी अध्यक्ष बनाया गया था। लेकिन कुछ ही दिनों में संगत के विरोध को देखते हुए उनकी जगह सेवानिवृत्त आईएएस अधिकारी डॉ.विजय सतबीरसिंघ को चेयरमैन बना दिया गया और वे अब भी चेयरमैन हैं।
मिली जानकारी के मुताबिक महाराष्ट्र सरकार दिसंबर के आखिरी दिन तक ये बदलाव करने जा रही है। गुरुद्वारा बोर्ड में 17 सदस्य होते हैं। जिसमें दो सदस्यों की नियुक्ति का अधिकार महाराष्ट्र सरकार के पास है। नए कानून में सरकार 8 सदस्यों की नियुक्ति कर सकती है। पंजाब का कोई भी व्यक्ति नांदेड़ गुरुद्वारा बोर्ड का सदस्य नहीं हो सकता। इसमें ऐसे कई बदलाव हैं। इसलिए इस बात की कोई गारंटी नहीं है कि नए कानून के तहत बनने वाला गुरुद्वारा बोर्ड 300 साल से ज्यादा पुरानी पूजा-अर्चा परंपराओं को नहीं छेड़ेगा। और यही इस नए कानून में होने वाला सबसे बड़ा खेल है। इसलिए नांदेड़ सिख गुरुद्वारा तख्त सचखंड श्री हजूर अबचलनगर साहिब एक्ट 1956 में नए संशोधन या बदलाव दोनों को लेकर सिख समुदाय में काफी विरोध हो रहा है। बार-बार ऐसा लग रहा है कि इस कानून के आनेसे मची अशांति के लिए महाराष्ट्र सरकार जिम्मेदार होगी। आज भी नांदेड़ सिख समुदाय की और से कानून में बदलाव के खिलाफ फिर से हस्ताक्षर अभियान चलाया जा रहा है। ऐसे में महाराष्ट्र सरकार को पुराने कानून को बदलने से पहले दोबारा सोचने की जरूर जरूरत है।
नांदेड़ सिख गुरुद्वारा तख्त सचखंड श्री हजूर अबचलनगर साहिब एक्ट 1956 में महाराष्ट्र सरकारने बदलाव किया गया तो सिख समुदाय में रोष फैलने की आशंका